भारत के वाम-उदारवादी बौद्धिक वर्ग और उन की तरफ से खडी की गई संस्थाएं पाखंड के प्रतीक है । वे वामपंथी मीडिया के माध्यम से खुद को 'उच्च नैतिक आधार' पर खड़ा हुआ दिखाते है | ऐसे दिखाते हैं जैसे सिर्फ वही सत्य जानते है और भारत में वही सत्य के संरक्षक हैं | ऐसे बताते हैं कि सिर्फ उन का बताया इतिहास सही है, बाकी सब झूठ बोलते हैं | कहीं पर किसी तरह की खुदाई में कोई अवशेषों के सबूत मिलें तो उस के विशेषग्य भी सिर्फ वही हैं | वही अनुभवी हैं और उन की बताई एक एक बात निष्पक्षता पर आधारित है | लेकिन जब परखा जाता है तो व्यक्तिगत जीवन में या सार्वजनिक जीवन में इन सभी मापदंडों पर गलत साबित होते हैं | न तो वे किसी भी विषय के विशेषग्य होते हैं , न सत्य बोल रहे होते हैं , न निष्पक्ष होते हैं | इस के बावजूद मीडिया का एक वर्ग उन्हीं की बातों को पत्थर पर लिखी इबारत की तरह पेश कर अपने पाठकों और दर्शकों को गुमराह करता रहता है | मीडिया का यह वर्ग दूसरा पक्ष सुनने को तैयार ही नहीं होता और उन्हें ब्लैक आऊट कर देता है | आज़ाद भारत में भी अयोध्या विवाद को इतना लम्बा लटकाने और मुस्लिम समाज को झूठे सबूत दे कर भडकाने में वामपंथियों की भूमिका के सबूत इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के फैसलों में मौजूद हैं | 

राम मंदिर मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन सभी वामपंथी इतिहासकारों को गवाही के लिए बुलाया तो वे उन बातों के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं रख सके , जो वे पिछले कई दशकों से लिख रहे थे | करीब करीब सभी वामपंथी इतिहासकारों को हाईकोर्ट में डांट पड़ी , कईयों ने तो अदालत में यह मान लिया था कि उन्हें यह सामग्री कम्युनिस्ट पार्टी ने उपलब्ध करवाई थी | फिर भी इन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने सुप्रीमकोर्ट में अपना पक्ष दोहराना चाहा तो हाईकोर्ट की सुनवाई पढ़ चुके सुप्रीमकोर्ट के तीनों जजों ने उन्हें यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें उन का लिखा सब पता है | सुप्रीमकोर्ट ने हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने के निर्णय को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस का कोई कानूनी आधार नहीं था लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा कि विवादित भूमि पर राम लला विराजमान का ही कानूनी अधिकार है | इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीनों जजों ने अपने फैसले में रामजन्मभूमि को स्वीकार किया था , लेकिन फैसले के अंतिम पैराग्राफ में भूमि को तीन हिस्सों में बाँट दिया था , जिस में से एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया था , जबकि उन का कोई दावा साबित नहीं हुआ था | 

दूसरी तरफ सभी वामपंथी इतिहासकार भगवान राम के अस्तित्व को भी नकार रहे थे , उस विवादास्पद जगह पर भगवान राम के जन्म को तो पूरी तरह खारिज कर रहे थे , यहाँ तक कह रहे थे कि अगर श्रीराम कहीं पैदा भी हुए होंगे तो अफगानिस्तान में कहीं पैदा हुए होंगे | कांग्रेस ने 2004 से 2014 तक अपने शासन के दौरान रामसेतू के मुद्दे पर इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सुप्रीमकोर्ट में हल्फिया बयान दे कर कह दिया था कि भगवान राम के पैदा होने का ही कोई सबूत नहीं है | रामजन्मभूमि मुद्दे पर अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने वामपंथी इतिहासकारों की उन सभी धारणाओं को खारिज कर के साफ़ साफ़ लिखा है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और इसी जगह पर हुआ था , जहां पिछले पांच सौ साल से हिन्दू कह रहे थे | पुरात्व विभाग की अब तक हुई सभी खुदाईयों में भी यह साबित हो रहा था कि इस विवादास्पद जमीन पर पहले मंदिर था | पुरातत्व विभाग के महानिदेशक रहे सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेता प्रोफेसर बी.बी. लाल ने तो 1969-70 से 1975-76 के बीच ही अपनी टीम के साथ विवादास्पद जमीन के आस पास खुदाई के बाद नीचे मंदिर होने की बातकही थी |   

वामपंथी इतिहासकारों और पुरातत्ववेताओं ने अपने वामपंथी मीडियाकर्मियों के साथ मिल कर प्रोफेसर बी. बी. लाल के खिलाफ ऐसा अभियान चलाया , जैसे उन की खुदाई ही फर्जी हो | जबकि उस टीम में शामिल के.के.मोहम्मद खुल कर कह रहे थे कि विवादास्पद जमीन के नीचे मंदिर है , वह केरल के मलयाली भाषी हैं ,उन्होंने खुदाई के अपने अनुभवों के आधार पर मलयाली में किताब लिखी है -“निजन एन्ना भारतीयन “  यानी मैं एक भारतीय , जिस में उन्होंने लिखा है कि वास्तव में रामजन्मभूमि के मुद्दे पर वामपंथी इतिहासकार हिन्दुओं और मुसलमानों में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण नहीं बनने दे रहे | अपने झूठे दस्तावेजों से वे मुसलमानों को उकसा और भडका रहे हैं | के के मोहम्मद ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था –“अगर वामपंथी इतिहासकार मुस्लिम बुद्धिजीवियों को दिग्भ्रमित नहीं करते तो बाबरी मसला बहुत पहले हल हो जाता , रोमिला थापर , बिपिन चन्द्र और एस. गोपाल ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को यह कह कर भडकाया कि 19वीं सदी से पहले मंदिर तोड़े जाने का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता और अयोध्या बोद्धों और जैनियों का केंद्र रहा है | इन तीनों को इरफ़ान हबीब , आर एस शर्मा , डी.एन झा , सूरज भान और अख्तर अली जैसे घोर वामपंथी समर्थन करते रहे |”    

जिस खुदाई पर आधारित पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट का जिक्र सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में बार बार किया है उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने करवाया था | हाईकोर्ट के निर्देश पर 12 मार्च 2003 को कोर्ट के तत्कालीन रिसीवर व मंडलायुक्त रामशरण श्रीवास्तव की निगरानी में एएसआई की टीम ने वहां उत्खनन शुरू किया । मौके पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष के वकील भी मौजूद थे , एएसआई की टीम में भी हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदायों के विशेषज्ञ थे ।  इस टीम का नेतृत्व डॉ. बी.आर. मणि कर रहे थे ।  लगभग दो महीनों तक एएसआई ने इस जगह की खुदाई की । इसमें 131 मजदूरों को लगाया गया था । 11 जून को एएसआई ने अंतरिम रिपोर्ट और अगस्त 2003 में 574 पेज की अंतिम रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी । उत्खनन में मिले खम्भों का निचला हिस्सा कच्ची ईंटों से बना हुआ था। खुदाई में सभी खम्भे एक कतार में मिले थे । एक दूसरे से लगभग 3.5 मीटर दूर । खुदाई के दौरान राम चबूतरे के नीचे पलस्तर किया हुआ चबूतरा मिलाथा । यह 21 गुना 7 फीट पत्थर का बना था ।  इससे 3.5 फीट की ऊंचाई पर 4.75 गुना 4.75 फीट की ऊंचाई पर दूसरा चबूतरा मिला।  इस पर सीढ़ियां थीं जो नीचे की ओर जाती थीं। रिपोर्ट के निष्कर्ष में उन्होंने किसी नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन आखिरी पैराग्राफ में उन्होंने लिखा है कि पश्चिमी दिशा की दीवार, खम्भों के अवशेषों और खुदाई में मिली चीजों से ये पता चलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर मौजूद था , जो बारहवीं सदी का हो सकता है |